Prof. (Dr.) Sushma Yadav
Pro Vice-Chancellor
Central University Of Haryana
Email: pvc@cuh.ac.in
Pro Vice-Chancellor office: 01285- 260113, 260108

From the desk of Pro Vice-Chancellor

एक शिक्षण संस्थान की सफलता लिए इसके सभी हितधारकों से सामूहिक प्रतिबद्धता, समर्पण, उत्तरदायित्व, रचनात्मकता और सेवा-उन्मुख मानसिकता की अपेक्षा होती है। इन गुणों के विकास व व्यवहार से किसी भी विश्वविद्यालय के लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूर्णतः प्राप्त किया जा सकता है। इस युवा विश्वविद्यालय के सम कुलपति के रूप में मेरी नैतिक व बौद्धिक प्रतिबद्धता विश्वविद्यालय के श्रेष्ठ कार्यों को आगे बढ़ाने की है ताकि इस विश्वविद्यालय को भारत के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक बनाने की दिशा में सार्थक व प्रासंगिक प्रयास हों। ये प्रयास ही इस विश्वविद्यालय के वर्तमान और भविष्य को दिशा व आकार देंगे।

ज्ञान, अनुसंधान और नवाचार में उभरते मापदण्डों और आदर्शों को ध्यान में रखते हुए, शिक्षा क्षेत्र में व्यापक व द्रुतगामी परिवर्तन देखा जा रहा है और उत्कृष्टता तक पहुँचने के लिए 'परिवर्तन के साथ चलना’ आवश्यक है। शिक्षण और प्रशिक्षण में नवाचारी दृष्टिकोण व मिश्रित पद्धतियों का प्रभावी उपयोग अब एक आदर्श बन गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को एक मार्गदर्शक स्रोत के रूप में स्वीकार करते हुए हमें इस नीति में निहित सिद्धांतों और विचारों को समग्रता में क्रियान्वित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। हमने इसे चरणबद्ध तरीके से अपने विश्वविद्यालय में क्रियान्वित करना आरंभ कर दिया है और अब हम नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अन्य शैक्षणिक संस्थानों का मार्गदर्शन भी कर रहे हैं। मैं प्रसन्न हूँ कि हमारा विश्वविद्यालय इस नीति को अपनाने के लिए समुचित कदम उठा रहा है और अपने दृष्टिकोण में नित नूतन और सत्य सनातन का सुंदर मिश्रण है।

हमारे विश्वविद्यालय में श्रेष्ठ संकाय सदस्य, कुशल सहायक कर्मचारी व उत्तम भौतिक ढांचा भी है। हरे-भरे विशाल परिसर, प्रौद्योगिकी समर्थित कक्षाएँ, आभासी कक्षाएँ, विश्वविद्यालय स्तर के छात्रवृत्ति कार्यक्रम, उपयोगकर्ता-केंद्रित सूचना सेवाओं के साथ सुसज्जित पुस्तकालय, शिक्षक व कर्मचारी आवास, विद्यार्थियों के लिए अनेक छात्रावास, जलपानगृह, व्यायामशाला, स्वास्थ्य केंद्र, वाई-फाई पार्क, सौर उर्जा प्रणाली, बैंकिंग और डाक सुविधाएं, बस सेवा आदि उनमें से कुछ हैं। हम इस अद्धः संरचना को बनाए रखने तथा इसे और अधिक विकसित करने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं।

हमारे पास दूरगामी दृष्टि, लक्ष्य व उद्देश्यों के साथ उपयुक्त मानव संसाधन और उन्नत भौतिक ढांचा भी है। अतः हमें ज्ञान के प्रचार प्रसार के साथ-साथ ज्ञानार्जन की दिशा के निर्माण में भी सक्रिय रूप से संलग्न होने की आवश्यकता है। सम्पूर्ण विश्व के शैक्षणिक क्षेत्र और समग्र समाज में, विश्वविद्यालयों से यह अपेक्षा रखी जाती है कि उनमें आदर्श शिक्षण-प्रशिक्षण, उच्च गुणवत्ता वाले शोध व प्रकाशन तथा नवाचार व रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने की क्षमता है। इस संदर्भ में, संकाय और छात्र समुदाय को संस्थागत और सामाजिक अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए। हमारे पास इस संस्थान और राष्ट्र निर्माण में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने के अवसर हैं । अतः संकाय, कर्मचारियों और विद्यार्थियों का यह परम कर्तव्य है कि वे इस प्रकार के अनुकरणीय कार्य करने की परंपरा और संस्कृति विकसित करने हेतु निरंतर प्रयास करें।

वस्तुतः एक संस्था के रूप में हमारी वर्तमान उपलब्धियाँ काफी प्रभावशाली हैं, लेकिन हमें उनसे संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। हमें गुणवत्ता को बनाए रखने और उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण, अत्याधुनिक अनुसंधान और अभिनव, छात्र और समुदाय-केंद्रित नवाचार के माध्यम से विश्वविद्यालय के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए और भी कठिन परिश्रम करना चाहिए।

हम भाग्यशाली हैं कि हम एक विश्वविद्यालय में हैं जहाँ हमें विद्या प्राप्त करने का अवसर मिलता है। विद्या अन्य सब गुणों का मूल है। संस्कृत साहित्य में उपलब्ध हमारी प्राचीन परम्परा यह विश्वास रखती हैः

विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥

अर्थात विद्या विनय (विनम्रता) देती है, विनय से पात्रता (योग्यता) आती है, पात्रता से धन, धन से धर्म और उस से सुख प्राप्त होता है ।

मैं आप सब के लिए उज्जवल भविष्य व सुखी जीवन की मंगल कामना करती हूँ !



प्रो. सुषमा यादव